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कहीं अंतरिक्ष से तो नहीं आया धरती पर जीवन

  • जीवन की उत्पत्ति में समर्थ यूरेसिल और नायसिन नाम के दो ऑर्गेनिक मॉलिक्‍यूल्स मिले
  • ये दोनों जैविक अणु पृथ्वी पर जीवन निर्माण के लिए जरूरी बिल्डिंग ब्लॉक्स के रूप में हैं जाने जाते

नई दिल्ली। नासा के वैज्ञानिकों को उल्कापिंड से लाए गए मिट्टी के सैंपल्स में जीवन की उत्पत्ति में समर्थ यूरेसिल और नायसिन नाम के दो ऑर्गेनिक मॉलिक्‍यूल्स मिले हैं। ये दोनों जैविक अणु पृथ्वी पर जीवन निर्माण के लिए जरूरी बिल्डिंग ब्लॉक्स के रूप में जाने जाते हैं। इस अध्ययन से उन मान्यताओं को बल मिल रहा है, जिनके मुताबिक जीवन की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार केमिकल बिल्डिंग ब्लॉक्स उल्कापिंडों या धूमकेतुओं के जरिए पृथ्वी पर पहुंचे।

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इंसान आदिकाल से ही सोचता आया है कि धरती पर जीवन कहां से आया? इस सवाल का जवाब जीवन को लेकर हमारा समूचा दृष्टिकोण बदलने में सक्षम है। इस संदर्भ में प्राचीन विश्व की अनेक सभ्यताओं में कई विचार मिलते हैं। चार्ल्स डार्विन की थियरी ऑफ इवोल्यूशन ने स्थापित किया कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में किसी दिव्य शक्ति का कोई हाथ नहीं, बल्कि यह केमिकल रिएक्शन और भौतिक प्रक्रियाओं के मेलजोल के चलते हुई। 1871 में डार्विन ने लिखा, मुमकिन है कि जीवन की शुरुआत गर्म पानी से भरे एक ऐसे तालाब में हुई हो, जिसमें सभी तरह के अमोनिया और फॉस्फोरिक सॉल्ट घुले होंगे और जिस पर ऊष्मा, प्रकाश और विद्युत की क्रिया होती रही होगी। इससे एक प्रोटीन युक्त यौगिक बना होगा, जिसमें और परिवर्तन होकर निर्जीव पदार्थों से पहले जीव बने होंगे।

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हालांकि डार्विन ने जीवन की उत्पत्ति को लेकर ज्यादा अटकलें लगाने से बचने की भरसक कोशिश भी की। वैसे भी डार्विन का जैव-विकास सिद्धांत वास्तव में जीवों के विकास की प्रक्रिया को समझाता है न कि जीवन की उत्पत्ति को। जीवन की उत्पत्ति को लेकर इन दिनों ओपेरिन-हैल्डेन के रासायनिक विकास या अबायोजेनेसिस सिद्धांत को सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। इसके मुताबिक, पृथ्वी की उत्पत्ति का अंतिम चरण जीवन के विकास से संबंधित है और जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों के कार्बनिक अणुओं से हुई है। 1953 में स्टेनली मिलर ने अपने गुरु हैरल्ड यूरे के साथ मिलकर ओपेरिन-हैल्डेन के सिद्धांत की प्रायोगिक पुष्टि की। मिलर की प्रायोगिक पुष्टि से इस सिद्धांत की अहमियत बहुत बढ़ गई। अभी इसकी मूल अवधारणाओं को सबसे अधिक समर्थन हासिल है। ऐसा भी नहीं है कि इससे सभी वैज्ञानिक सहमत हैं। कई के मुताबिक रासायनिक पदार्थों के अचानक मेलजोल या फ्यूजन से धरती पर जीवन की उत्पत्ति की बात करना ठीक वैसा ही है, जैसे मंगल ग्रह पर कंप्यूटर मिलने पर कोई यह दावा करे कि इस कंप्यूटर का रैंडम संयोजन मीथेन से भरे तालाब में हुआ है! जीवन निर्माण के कई मूलभूत तत्व उल्कापिंडों और धूमकेतुओं में भी पाए गए हैं, जो इस संभावना को बल देते हैं कि शायद पृथ्वी पर जीवन बाहरी अंतरिक्ष से आया हो।

पृथ्वी पर जीवन बाहरी अंतरिक्ष से आया है, इस मान्यता को ‘पैनस्पर्मिया’ थियरी कहते हैं। लॉर्ड केल्विन और वॉन हेल्महोज जैसे दिग्गज वैज्ञानिक इसके शुरुआती समर्थकों में से थे। बीसवीं सदी में सर फ्रेड हॉयल और चंद्रा विक्रमसिंघे ने इस सिद्धांत को जोरदार स्वीकृति दी। ‘पैनस्पर्मिया’ में आस्था रखने वाले ज्यादातर वैज्ञानिक तथ्यों और कल्पनाओं की दोधारी तलवार पर ही चलते हैं। ओपेरिन-हैल्डेन सिद्धांत के समर्थकों के मुताबिक सही मायनों में पैनस्पर्मिया यह नहीं बताता कि जीवन की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, बल्कि यह केवल उत्पत्ति का फोकस पृथ्वी से दूर अंतरिक्ष में कर देता है।फिलहाल पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कब, कैसे और कहां हुई, इस विषय पर ढेरों सिद्धांत और विवाद हैं।

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