भिखारी ठाकुर द्वारा रचित नाटक बेटी वियोग दहेज़ और बेमेल शादी ने लोगों को खूब रुलाया
खगौल। बिहार के अमर लोक कलाकार भिखारी ठाकुर ऐसे ही भोजपुरी के शेकस्पीयर नहीं कहे जाते। उन्होंने अपने समय में विभिन्न सामजिक कुरुतियो को नाटक के माध्यम से जो ज्वलंत मुद्दा उठाया था । वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनका एक नाटक बेटी वियोग दहेज़ और बेमेल शादी से उत्पन्न एक बेटी की दुःखद दास्तान है, जिसका मंचन पिछले चार दशकों से अधिक सक्रिय है।
यही नाटक खगौल की स्थानीय और प्रदेश की बहुचर्चित संस्था मंथन कला परिषद द्वारा किया गया। नाटक का निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी प्रमोद कुमार त्रिपाठी ने किया। नाटक में एक ऐसे गरीब, लालची पिता की कहानी है, जो पैसे और धन की लालच में धूर्त पंडित के सहयोग से अपनी बेटी की शादी दुगनी से भी अधिक उम्र के एक बीमार व्यक्ति से मोटी रकम लेकर तय कर देता है। बेटी को ससुराल में अपने पति से कोई सुख नहीं मिलता, बल्कि उसे किसी न किसी बहाने रोज -रोज अत्याचार का सामना करना पड़ता है.
आखिर एक दिन वह तंग आकर अपने मायके चली आती है। रो -रो कर बेटी अपने हाल का बयान करती है और ससुराल नहीं जाने का कड़े मन से फैसला लेती है,पर दी गई रकम के बदले उसका बूढा पति अपनी सेवा,देख -भाल के लिए परिवार और समाज पर दवाब बनाता है। थक हारकर लड़की अपने ससुराल जाने को मज़बूर होती है, उसका कोई साथ नहीं देता। वह रोते – बिलखते अपने पिता और समाज को कोसती है और फिर कभी जीवित वापस नहीं आने का संकल्प लेकर समाज के क्रूर हाथों का शिकार हो जाती है।
भिखारी ठाकुर की यह कृति अपने प्रभावी मंचन से दर्शकों को बार -बार रुलाती है. लोकगीत – संगीत से भरपूर यह नाटक मनोरंजन के साथ – साथ बेटियों के प्रति समाज के कुछ क्रूर चेहरे को उजागर करती है। इस नाटक मे अंजलि शर्मा का परिकल्पना एवं अमन कुमार के संयोजन तथा कलाकारों में रजनीकांत ( पंच ),दीनानाथ गोस्वामी(लोभी पंडित), पूजा कुमारी(बेटी ), कुमारी शिखा ( बेटी की मां ), सोनू कुमार ( गोतिया ), रोहन राज (लड़की का पिता ), निरंजन कुमार (दूल्हा ), पूजा कुमारी ( आरा वाली सखी), काजल कुमारी, रिंकी कुमारी, प्रशांत कुमार, प्रीतम कुमार आदि नाटक की भूमिका एवं श्यामाकांत साह (संगीत ),काजोल कुमारी (मुख्य गायन ), सज्जाद आलम (प्रकाश परिकल्पना)व संजीत गुप्ता (मंच सज्जा ) ने नेपथ्य से इस लोक नाटक की जीवंत प्रस्तुति में अपना भरपूर योगदान दिया ।