आरएसएस की महिला शाखा ने शुरू किया ‘गर्भ संस्कार’ अभियान
- गर्भ में ही बच्चों को संस्कृति और मूल्यों की शिक्षा देना उद्देश्य
- भारत का शिक्षा मॉडल इंग्लैंड में लागू होने के बाद वहां की 70 प्रतिशत आबादी शिक्षित हो गई : मोहन भागवत
नई दिल्ली, एजेंसी। आरएसएस की महिला शाखा राष्ट्र सेविका समिति के एक विंग संवर्धिनी न्यास ने बच्चों को मां के गर्भ में ही संस्कार देने के लिए ‘गर्भ संस्कार’ अभियान शुरू किया है। ये कैंपेन गर्भवती महिलाओं के लिए आयोजित की गई है, जिसका मूल उद्देश्य गर्भ में ही बच्चों को संस्कृति और मूल्यों की शिक्षा दी जा सके। इसमें गर्भवती महिलाओं को गीता, रामायण, शिवाजी महाराज और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और संघर्ष के बारे में जानकारी दी जाएगी, ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे भारतीय संस्कृति के बारे में सीख सकें।

5 मार्च को जेएनयू यूनिवर्सिटी में गायनेकोलॉजिस्ट्स का एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस वर्कशॉप में एम्स-दिल्ली सहित कई स्त्री रोग विशेषज्ञों ने भाग लिया था। इस अभियान में महिला रोग विशेषज्ञों, आयुर्वेदिक डॉक्टरों और योग प्रशिक्षकों को शामिल किया गया। वे गर्भवती महिलाओं के पास जाकर उन्हें गीता और रामायण पढ़ने और योग करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। ये महिलाओं के पास जाकर उन्हें बताएंगी कि वो अपने बच्चे को कैसे गर्भ से ही भारतीय संस्कृति के बारे में सीख दे सकती हैं। संवर्धिनी न्यास की राष्ट्रीय सचिव माधुरी मराठे ने कहा कि गर्भ संस्कार कैंपेन के तहत गर्भ में पल रहा बच्चा पहले ही भारतीय संस्कार को सीखेंगे।
गर्भवती महिलाओं को भगवान राम, हनुमान, शिवाजी समेत स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और संघर्ष के बारे में बताया जाए, जिससे गर्भ में पल रहा बच्चा पहले ही संस्कार सीखना शुरू कर दें। स्त्री रोग विशेषज्ञ, आयुर्वेदिक डॉक्टर और योगा ट्रेनर के साथ न्यास विंग योजना बना रहा है, जिसमें ‘गर्भ में बच्चों को सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करने’ के लिए गर्भावस्था के दौरान गीता का जाप, रामायण और योग अभ्यास शामिल होगा। मराठे ने कहा, यह कार्यक्रम गर्भावस्था से दो साल की उम्र के बच्चों के लिए शुरू होगा। इसमें गीता के श्लोकों और रामायण की चौपाइयों के जाप पढ़ाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि गर्भ में एक बच्चा 500 शब्द तक सीख सकता है।

हरियाणा के सोनीपत में होगी संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक, जनसंख्या नियंत्रण पर होगी चर्चा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में मुस्लिम आउटरीच और जनसँख्या नियंत्रण समेत अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी। काफी वक्त से संघ मुस्लिम समुदाय से संवाद कर रहा है और सहमति के बिंदुओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। संघ की प्रतिनिधि सभा फैसला लेने वाली सर्वोच्च बॉडी होती है। इसकी मीटिंग हर साल मार्च में होती है और इस बार यह मीटिंग हरियाणा के सोनीपत में होनी है। संघ के एक पदाधिकारी के मुताबिक प्रतिनिधि सभा में संघ के कामकाज की समीक्षा की जाती है। संघ से जुड़े संगठन जिन्हें संघ का अनुषांगिक संगठन कहा जाता है, उसके प्रतिनिधि भी इस बैठक में मौजूद होते हैं। हालांकि अनुषांगिक संगठनों के कामकाज की विस्तार से चर्चा नहीं हो पाती।

हर संगठन को तीन से चार मिनट का वक्त दिया जाता है जिसमें वह अपने कामकाज से जुड़े मुख्य बिंदु पर बात कर सकते हैं। बैठक में अलग अलग प्रांतों में संघ का काम कैसा चल रहा है उस पर बात होगी और आगे के लक्ष्य तय किए जाएंगे। संघ कुछ वक्त से लगातार मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों से बातचीत कर रहा है। कई दौर की मीटिंग हो चुकी हैं। जिसमें मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि अपनी चिंताएं रखते हैं साथ ही संघ को लेकर अगर कुछ गलतफहमी होती है तो उसे दूर करने की कोशिश होती है।
प्रतिनिधि सभा में कुछ प्रस्ताव भी पास हो सकते हैं। एक पदाधिकारी के मुताबिक आम तौर पर सामाजिक और राजनीतिक प्रस्ताव पास होते हैं। प्रस्ताव की संख्या कम-ज्यादा हो सकती है। माना जा रहा है कि संघ जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी प्रस्ताव ला सकता है। विजया दशमी पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी स्पीच में कहा था कि जनसंख्या एसेट भी है और बोझ भी। सब बातों का ख्याल रखकर जनसंख्या नीति बनानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि जनसंख्या असंतुलन के भी गंभीर नतीजे होते हैं और जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन और सीमा पार से घुसपैठ जनसंख्या असंतुलन की एक वजह है। सबकुछ ध्यान में रखकर जनसंख्या नीति बने और समाज का मन तैयार करें। संघ इस दिशा में भी काम कर रहा है।

ब्रिटिश शासन से पहले भारत की 70 फीसदी आबादी शिक्षित थी : मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हरियाणा के करनाल में कहा कि ब्रिटिश शासन से पहले भारत की 70 फीसदी आबादी शिक्षित थी। उस समय देश में कोई बेरोजगारी नहीं थी और उसी शिक्षा के बलबूते पर सब लोग अपनी आजीविका का रास्ता खोज लेते थे। उन्होंने कहा कि जब अंग्रेज भारत में आए तो उन्होंने हमारे देश के शिक्षा के मॉडल को कबाड़ खाने में डाल दिया। यानी हमारे शिक्षा मॉडल को वो अपने देश में ले गए। जबकि अपने देश के मॉडल को अंग्रेजों ने भारत में लागू कर दिया।

मोहन भागवत ने कहा कि भारत का शिक्षा मॉडल इंग्लैंड में लागू होने के बाद वहां की 70 प्रतिशत आबादी शिक्षित हो गई और उनके शिक्षा मॉडल से हमारे देश में केवल 17 प्रतिशत लोग ही शिक्षित रह गए। संघ प्रमुख ने कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली न केवल रोजगार के लिए थी बल्कि ज्ञान का माध्यम भी थी। शिक्षा सस्ती और सभी के लिए सुलभ थी। इसलिए शिक्षा का सारा खर्च समाज ने उठाया और इस शिक्षा से निकले विद्वानों, कलाकारों और कारीगरों को पूरी दुनिया में पहचान मिली। हमारे यहां पर शिक्षक सबको सिखाता था, उसमें वर्ग व जाति का भेद नहीं होता।