- सुप्रीम कोर्ट ने दिए विस्तृत सुनवाई के संकेत
नई दिल्ली। ईसाई और मुस्लिम दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग पर आगे की सुनवाई की रूपरेखा जुलाई में तय होगी। सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में केंद्र ने पूर्व चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन के नेतृत्व में बनी कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार करने की दलील दी। इस पर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 19 साल से मामला लंबित है। संवैधानिक सवालों पर विचार किया जाना चाहिए। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष लिखित नोट जमा करवाएं। 11 जुलाई को आगे की सुनवाई पर आदेश जारी किया जाएगा। 1936 में ब्रिटिश शासन की तरफ से जारी आदेश में कहा गया था कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने दलितों को शोषित वर्ग नहीं माना जाएगा। 1950 में राष्ट्रपति की तरफ से जारी ‘दि कॉन्स्टिट्यूशन (शेड्यूल्ड कास्ट्स) ऑर्डर’ में इस बात का प्रावधान है कि सिर्फ हिंदू, सिख और बौद्ध समुदाय से जुड़े दलितों को ही अनुसूचित जाति का दर्जा मिलेगा। चूंकि ईसाई और मुस्लिम समाज मे जाति व्यवस्था के न होने की बात कही जाती है, इसलिए हिंदू से ईसाई या मुस्लिम बने धर्म परिवर्तित लोग सामाजिक भेदभाव के आधार पर खुद को अलग दर्जा देने की मांग नहीं कर सकते।

साल 1950 के राष्ट्रपति आदेश को 1980 के दशक में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। ‘सूसाई बनाम भारत सरकार’ नाम से चर्चित इस मामले पर 1985 में फैसला आया था। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई और मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से मना कर दिया था। कोर्ट ने माना था कि राष्ट्रपति आदेश काफी सोच-विचार कर जारी किया गया था। ऐसा कोई भी तथ्य या आंकड़ा उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को वंचित या शोषित माना जा सके। 7 अक्टूबर 2022 को केंद्र सरकार ने पूर्व चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय आयोग बनाया। यह आयोग इस बात की समीक्षा करेगा कि क्या धर्म परिवर्तन कर ईसाई या मुस्लिम बन चुके दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की ज़रूरत है। इस आयोग को अपनी रिपोर्ट देने के लिए 2 साल का समय दिया गया है। केंद्र सरकार के लिए पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल के एम नटराज ने बालाकृष्णन आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करने का सुझाव दिया। याचिकाकर्ताओं के लिए पेश प्रशांत भूषण, कॉलिन गोंजाल्विस, सी यू सिंह जैसे वकीलों ने सुनवाई टालने का विरोध किया। उन्होंने संवैधानिक सवालों पर विचार की मांग की। उनका कहना था कि धर्म के आधार पर कुछ लोगों को अनुसूचित जाति न मानना समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

जस्टिस संजय किशन कौल, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और अरविंद कुमार के सामने कुछ अनुसूचित जाति संगठनों ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने ईसाई और मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने पर सुनवाई न करने की मांग की।इस पर जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि जो दलित धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, वह सामाजिक भेदभाव से मुक्त हो गए। संविधान छुआछूत और भेदभाव को मान्यता नहीं देता। छुआछूत विरोधी कानून भी है। फिर तो अनुसूचित जातियों को भी आरक्षण की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। छुआछूत के खिलाफ कानून होने के बावजूद जब आरक्षण ज़रूरी है तो धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों के बारे में भी सुनवाई होनी चाहिए।