कर्ज चुकाने के लिए गिरवी रखने पड़े बच्चे
- मानवाधिकार आयोग ने कहा मौजूदा समय में इस तरह की गुलामी स्वीकार नहीं
भुवनेश्वर। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक याचिका का संज्ञान लेते हुए ओडिशा और तेलंगाना के मुख्य सचिवों से चार हफ्ते के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले पर जवाब मांगा है कि गरीब महिलाओं के बच्चों को मजदूरी के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? खासकर यह ऐसे मामलों मे पाया गया है जो महिलाएं कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं हैं। इसके बदले में उन विधवा महिलाओं को बच्चों से मजदूरी कराने के लिए मजबूर किया जा रहा है। एक ओर जहां आजादी के बाद हम समाज को पढ़ा-लिखा और जागरूक बताते हैं। वहीं ऐसे दौर में एक गरीब तबके को इस कदर मजबूर किया जाना आज भी गुलामी को बयां करने के लिए काफी है। गरीब विधवा महिलाओं की इस मजबूरी को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील राधाकांत त्रिपाठी ने पिछले महीने याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा, ‘सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न देखने को मिलें जहां गरीब और असहाय विधवाओं को बच्चों से मजदूरी कराने के लिए विवश किया जाए।
गरीब विधवाओं के हक के लिए दायर याचिका में आधुनिक गुलामी की दो दिल दहला देने वाली कहानियां हैं। जिसमें पहली कहानी ओडिशा की है। जहां बलांगीर जिले के शुकदेव हैदराबाद के पास एक ईंट भट्ठे पर काम कर रहे थे। वह बीमार पड़ गए और 8 मार्च को उनकी मौत हो गई। उनकी पत्नी अंतिम संस्कार के लिए शव को घर ले आईं। वह अपने छह साल के बेटे के साथ घर पहुंची थी। लेकिन उसे अपनी 12 साल की बेटी को गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्योंकि शुकदेव ने भट्ठा के मालिक से 60,000 रुपये का कर्ज लिया था। याचिकाकर्ता ने कहा कि बलांगीर जिला प्रशासन ने शुकदेव की बेटी को ईंट भट्ठे से छुड़ा लिया है। वहीं एक दूसरे मामला क्योंझर जिले के गढ़ुली गांव का है। जहां एक आदिवासी महिला साबित्री नायक ने 26 जनवरी, 2016 को अपने पति के अंतिम संस्कार के लिए पड़ोसी से 5,000 रुपये उधार लिए थे। जिसे चुकाने में असमर्थ तीन बच्चों की मां को अपने 13 और 11 साल के दो बेटों को गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। जिन्होंने कर्ज मुक्त होने के लिए एक महीने से ज्यादा समय तक पड़ोसी के मवेशियों को चराने के साथ ही बाकी काम किया।