- खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा
पटना। बिहार में जारी जातीय गणना पर मचे सियासी घमासान के बीच अब यह मामला कोर्ट में भी पहुंचा हुआ है। इसी कड़ी में पटना हाईकोर्ट आज गुरुवार को अपना अंतरिम आदेश सुनायेगी। जातीय गणना पर पटना हाईकोर्ट में बहस पूरी हो गई है। मुख्य न्यायाधीश कृष्णन विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। दरअसल, नीतीश सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट में सुनवाई के निर्देश दिए थे। याचिकाकर्ता का कहना है कि जातीय जनगणना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। जातीय गणना पर अखिलेश कुमार व अन्य की याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने यह जानना चाहा कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है?
कोर्ट ने यह भी पूछा है कि यह अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं? साथ ही ये भी जानना कि इससे निजता का उल्लंघन होगा क्या? इस गणना का उद्देश्य क्या है? क्या इसे लेकर कोई कानून भी बनाया गया है? इस पर महाधिवक्ता पीके शाही ने अपना जवाब दिया। सरकार सभी बातों का ध्यान रखकर इसे करवा रही है। जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वेक्षण कराया जा रहा है। जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से दीनू कुमार व ऋतु राज, अभिनव श्रीवास्तव ने सुनवाई के दौरान खंडपीठ को बताया कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का यह अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। यह संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है। यह केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है।
दीनू कुमार ने कहा कि जब किसी पर दबाव नहीं डाला जा सकता है और उन्हें जवाब के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है तो ऐसे में बिहार सरकार क्या जनता के पैसों का दुरुपयोग नहीं कर रही है। सरकारी अधिकारियों को फालतू के कामों में उलझा कर उनका वक्त क्यों बर्बाद किया जा रहा है| इस मामले को लेकर दो दिनों तक लगातार सुनवाई हुई। बता दें कि बिहार में 7 जनवरी से जातीय गणना शुरू हुई है। 15 अप्रैल से इसके दूसरे चरण की शुरुआत हो चुकी है। 15 मई तक इसे पूरा करने के बाद इस पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। अगर कोर्ट इस पर रोक लगाती है तो जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।