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कर्नाटक में चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस ने माना सबसे बड़ी बाधा पीएम मोदी!

  • नेताओं को यह दी यह काम न करने की सलाह
  • पीएम मोदी हिंदुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहस में न लें भाग

बेंगलुरु। कर्नाटक चुनाव को लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने पार्टी नेताओं को निर्देश जारी किया है। कांग्रेस नेतृत्व ने अनौपचारिक रूप से उम्मीदवारों और पदाधिकारियों को 10 मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान पीएम मोदी पर हमला करने और हिंदुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहस में शामिल होने से बचने के लिए कहा है।पिछले हफ्ते एक बैठक के दौरान कांग्रेस नेतृत्व ने पार्टी नेताओं को संदेश देते हुए कहा कि अगर हम मोदी के खिलाफ कुछ भी कहते हैं, तो इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाएगा और चुनावी नैरेटिव को बदलने की कोशिश की जाएगी।

कांग्रेस नेतृत्व को गुजरात चुनाव के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे की टिप्पणियों को “घुमा” कर पेश करने का हवाला दिया गया है। कांग्रेस ने इसके बजाय भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकार की विफलताओं के साथ-साथ भ्रष्टाचार के आरोपों और महंगाई पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। कांग्रेस अपने चार बड़े वादों के साथ चुनाव में जाएगी इसमें 200 यूनिट मुफ्त बिजली, परिवारों की महिला मुखियाओं को 2,000 रुपये प्रति माह, बेरोजगार स्नातकों को 3,000 रुपये प्रति माह और प्रत्येक सदस्य के लिए 10 किलो चावल बीपीएल परिवारों शामिल है।

रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों ने कहा कि अनौपचारिक निर्देश पिछले सप्ताह 124 उम्मीदवारों के लिए चल रही एक बैठक में दिए गए थे। बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार, विपक्ष के नेता सिद्धारमैया और महासचिव रणदीप सुरजेवाला मौजूद थे। केपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष रामलिंगा रेड्डी ने कहा, “हमारा चुनावी मुद्दा राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार की विफलता, 40% कमीशन शुल्क और मूल्य वृद्धि और बेरोजगारी जैसे मुद्दे होंगे। हम अपने चुनावी वादों को भी आक्रामक रूप से उजागर करेंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि पीएम पर हमलों से बचने के लिए कोई फैसला नहीं किया गया है।

भाजपा के खिलाफ 40% घूस के आरोपों पर अपने पे सीएम अभियान के साथ और चुनाव से पहले आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण, कांग्रेस बीजेपी को निशाना बना रही है। पार्टी नेताओं का मानना है कि कांग्रेस ने मुस्लिमों के लिए 4% ओबीसी आरक्षण खत्म करने के सरकार के फैसले का उतनी मजबूती से विरोध नहीं किया, जितनी उम्मीद की जा रही थी।

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