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आज रंग है लेकिन मंच नहीं : नवाब आलम

  • हिंदी रंगमंच दिवस पर प्रकृति से हैं हम नुक्कड नाटक की हुई प्रस्तुति
  • आज ज्वलन्त मुद्दे बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण ,प्रदूषण, जल संकट पर नाटक लिखने की जरूरत है। : प्रसिद्ध यादव।

खगौल । मंगलवार को खगौल के मोती चौक पर चर्चित नाट्य संस्था सूत्रधार, खगौल के बैनर तले संस्था के महासचिव नवाब आलम लिखित ,नीरज कुमार द्वारा निर्देशित “प्रकृति से हैं हम ” नुक्कड नाटक की दिल छू लेने वाली प्रस्तुति हुई। सबसे पहले ” कस्बाई रंगमंच के संकट और चुनोतियाँ बिषय पर संगोष्ठी हुई ।लेखक प्रसिद्ध यादव ने हिंदी रंगमंच के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ” हिंदी रंगमंच ने न केवल समाज को आईना दिखाया, बल्कि एक नई राह दिखाया। नाटकों में गुलामी ,शोषण,जुर्म,अत्याचार ढोंग,अंधविश्वास, पाखंड के खिलाफ भी आवाज बुलंद हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे महान नाटककार, कवि,रंगकर्मी का उदय प्रथम नाटक मंचन करने से हुआ था। हिंदी रंगमंच दिवस हर साल तीन अप्रैल को मनाया जाता है. 3 अप्रैल 1868 को बनारस में पहली बार शीतलाप्रसाद त्रिपाठी कृत हिन्दी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ था। आज ज्वलन्त मुद्दे बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण ,प्रदूषण, जल संकट पर नाटक लिखने की जरूरत है।”

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संस्था के महासचिव नवाब आलम सामाजिक कार्यकर्ता चंदू प्रिंस ने खगौल के लंबे रंगमंच के इतिहास को विस्तार से बताते हुए फिल्म संगीतकार श्याम सागर, हरिदेव विश्वकर्मा, समी खान,आर एन चतुर्वेदी, , मो सलाम, मो सरूर अली अंसारी, व्ही वासुदेव, चित्रकार सुबोध गुप्ता, कहानीकार अवधेश प्रीत, आर एन प्रसाद, प्रमोद कुमार त्रिपाठी,आर पी वर्मा तरुण आदि वरिष्ठ लोगों की जमात थी उनमें से आज भी कुछ लोग सक्रिय हैं। जो खगौल रंगमंच की देन हैं साथ ही खगौल में प्रेक्षागृह की अभाव पर कहा ” आज रंग है लेकिन मंच नहीं है।” नवाब आलम ने कहा कि हिंदी रंगमंच के उत्थान के प्रति सरकारी उदासीनता भी एक बड़ा कारण है, कलाकारों में प्रतिबद्धता की कमी,पूर्वाभ्यास के प्रति घटती रुचि,महंगे होते प्रेक्षागृह व अन्य साधनों के कारण प्रस्तुति करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। हिंदी रंगमंच से जुड़े कलाकार आज घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

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नुक्कड नाटक “प्रकृति से हैं हम ” में जल संकट, पेड़ों की कटाई,दूषित जल पर केंद्रित रहा। कलाकारों द्वारा बेहतरीन अभिनय किया गया ।इसमें पानी के महत्व, पेड़ों के महत्व को बखूबी बताया गया और दर्शकों से अपील भी किया गया कि पानी बर्बाद न करें,दूषित पानी का सेवन न करें और हरे – हरे पेड़ों को न काटें। नाटक में मुख्य भूमिका में नीरज कुमार, शशि भूषण कुमार, रत्नेश कुमार, आर्यन कुमार, सुधीर , टीपू पांडे, , सेजल भारती, रोहित कुमार,नवीन कुमार आदि शामिल थे । गीत -संगीत मन को मोह लिया। इस अवसर पर अधिवक्ता एवं पत्रकार क्रांति कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता चंदू प्रिंस शायर राशिद खान, संजय कुमार,आस्तानन्द सिंह,मो सदीक ,रंजीत कुमार सिन्हा, ने भी अपने विचार रखे।

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