प्रकृति का आशीष, सरकार और प्रसाशन उदासीन : इंडो-नेपाल बॉर्डर के गांवों में बदहाली और में कष्ट में गुजरा कर रहे हैं लोग
- इलाका वीटीआर का : प्रकृति का दिया सब कुछ है, मगर जरूरतों को पूरा करने के संसाधन नहीं
- वीटीआर का क्षेत्र होने के कारण बिजली के लिए एनओसी नहीं मिल रही
- बिजली नहीं तो सूर्यास्त से पहले खाना बनाना मजबूरी, किरासन तेल की सप्लाई बंद, लकड़ी जलाकर गुज़ारा
- जंगली जानवरों के आतंक के कारण अंधेरा होने पर यहां के लोग घरों से नहीं निकलते हैं
मुजफ्फरपुर। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व क्षेत्र के गांवों में प्रकृति का दिया सब कुछ है। जंगल, पहाड़, नदियां और शुद्ध हवा। कोरोना काल में भी यहां के लोग स्वस्थ थे। क्योंकि जंगली इलाका होने के कारण यहां के लोगों को प्राकृतिक ऑक्सीजन मिलती रही। लेकिन, नहीं है तो आज की जरूरतों को पूरा करने का संसाधन। यहां ढिबरी युग भी नहीं बचा। वीटीआर का क्षेत्र होने के कारण बिजली के लिए एनओसी नहीं मिल रही है।
सरकार ने किरासन तेलन का आवंटन बंद कर दिया है। जंगली जानवरों के आतंक के कारण अंधेरा होने पर यहां के लोग घरों से नहीं निकलते हैं। अंधेरे में परेशानी नहीं हो, इसलिए सूर्यास्त से पहले ये खाना बनाकर घरों में बंद हो जाते हैं। इनके पास स्मार्टफोन नहीं है। बेसिक मोबाइल से काम चलाते हैं। नेपाल जाकर मोबाइल चार्ज करते हैं। उसके लिए इन्हें 20 रुपए देने पड़ते हैं। स्मार्ट फोन की बैटरी मात्र एक दिन चलती है।
बगहा-2 प्रखंड की लक्ष्मीपुर रमपुरवा पंचायत के रमपुरवा, चकदहवा, बिनटोली, कान्ही टोला व झंडू टोला भारत-नेपाल सीमा के आखिरी छोर पर बसे ऐसे गांव हैं, जहां वन विभाग के अवरोधों के कारण बिजली नहीं पहुंची है। सोलर प्लांट से इन गांवों काे रौशन करने की व्यवस्था है। वह भी एक वर्ष से खराब है। किरासन तेल की आपूर्ति सरकार ने पहले ही बंद कर दी है। वीटीआर के सघन जंगल से घिरे गंडक तटवर्ती के ये पांचों गांव बाढ़ प्रभावित हैं। रोशनी के संकट के कारण सूर्यास्त होने से पहले ही उनके घरों में रात का भोजन बना लिया जाता है।
मेंटेनेंस के अभाव में खराब है प्लांट
विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह ऊर्फ रिंकू सिंह ने बताया कि बगहा-2 प्रखंड की लक्ष्मीपुर रमपुरवा पंचायत के रमपुरवा, चकदहवा, बिनटोली, कान्ही टोला व झंडू टोला जंगल से घिरा है। बिजली के लिए एनओसी नहीं मिल रही है। सोलर प्लांट लगाया गया था। मेंटेनेंस के अभाव में खराब हो रहा है।
दहशत में कट रही 250 परिवारों की जिंदगी
गंडक तटवर्ती के ये पांचों गांवों में 250 परिवार रहते हैं। हाल में बाघ के आतंक से इनकी सांसें अटकी रहती है। बाघ किस क्षण आ जाए, कोई नहीं जानता। ग्रामीणों ने बताया कि पड़ोसी गांव सुस्ता हालांकि भारतीय गांव ही है, लेकिन पांच दशक से यहां नेपाल ने कब्जा कर रखा है। पड़ोस के इस गांव (सुस्ता) में नेपाल प्रशासन ने बिजली समेत सभी सुविधाओं की व्यवस्था कर रखी है।