हिंदी रंगमंच दिवस पर नाटक एवं संगोष्ठी के साथ अंधेर नगरी का हुआ मंचन
खगौल। बुधवार को स्थानीय मोती चौक स्थित वायरस डांस अकादमी के परिसर मे हिंदी भाषी इलाकों में भी हिंदी के नए नाटक नहीं लिखे जाने पर रंगकर्मियों ने गंभीर चिंता जताई है। चर्चित सांस्कृतिक संस्था सूत्रधार द्वारा आयोजित हिंदी रंगमंच दिवस पर नाटक एवं संगोष्ठी आयोजित की गई।
दो चरणों में विभक्त इस आयोजन के पहले चरण में वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं पूर्व हिंदी अधिकारी पूर्व मध्य रेल, दानापुर राजमणि मिश्रा की अध्यक्षता में एवं पत्रकार अशोक कुमार कुणाल के संचालन में हिंदी रंगमंच की उपलब्धियां विषय पर संगोष्ठी में वक्ता के रूप में साहित्यकार एवं पत्रकार प्रसिद्ध यादव ने कहा की हिंदी रंगमंच दिवस हर वर्ष 3 अप्रैल को मनाया जाता है 3 अप्रैल 1968 को बनारस में पहली बार शीतला प्रसाद त्रिपाठी कृत हिंदी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ था।
इसमें भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लक्ष्मण की भूमिका निभाई थी। दर्शकों ने उनके अभिनय से खूब सराहा था। इसे महाराज काशी नरेश ने आयोजित किया था। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी एवं कवि विनोद शंकर मिश्र उपस्थित थे।
उन्होंने कहा की हिंदी रंगमंच का इतिहास काफी गौरवशाली है लेकिन वर्तमान में हिंदी रंगमंच संसाधन के अभाव में दम तोड़ रहा है। निर्देशक एवं मासिक पत्रिका निर्भय पक्षी के संपादक रामनारायण पाठक ने कहा कि हिंदी रंगमंच कुछ वर्ग से उठ कर आम लोगों तक पहुंचा है जिससे लोगों में सामाजिक नीतियों एवं कुरीतियों दोनो विषय से रू ब रू हुए हैं।
आगत अतिथियों का स्वागत सूत्रधार के रंगकर्मी राकेश कुमार ने किया । अध्यक्ष राजमणि मिश्र ने कहा कि हिंदी रंगमंच के विकास कभी तत्कालीन महाराजा काशी नरेश ईश्वरीनारायण सिंह ने अहम भूमिका निभाई है लेकिन वर्तमान में राज्य सरकार की उदासीनता चिंताजनक है लेकिन अव्यवसायिक संस्थाएं हिंदी रंगमंच के विकास में अपनी सार्थक भूमिका निभा रही है।
वहीं दूसरी ओर कलाकारों में प्रतिबद्धता की कमी, पूर्वाभास के प्रति घटती रुचि, प्रेक्षागृह का अभाव अन्य संसाधनों के कारण नाटक करना मुश्किल होता जा रहा है। संगोष्ठी को वरिष्ठ रंगकर्मी यमुना प्रसाद,विकास कुमार पप्पू एवं विष्णु गुप्ता ने अपनी बातें रखीं। मौके पर भोला कुमार,राजीव रंजन त्रिपाठी देवानंद यादव सहित संकड़ों लोग मौजूद थे। कार्यक्रम के दूसरे चरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र लिखित एवं नवाब आलम द्वारा निर्देशित नाटक अंधेर नगरी का मंचन किया गया। सहायक निर्देशक थे राकेश कुमार ।
गौरतलब है कि हिंदी रंगमंच के विकास में भारतेंदु नाटक मंडली1906 की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। नाटक के कलाकारों में राकेश कुमार उर्फ राकेश प्रेम, तेजस रॉय, सिद्धू कुमार,अभिषेक राज,राजू कुमार,सन्नी कुमार,संस्कार राज,रौशन कुमार,आदित्य कुमार,निशांत,कुंदन कुमार आदि शामिल थे।चर्चित सांस्कृतिक संस्था सूत्रधार द्वारा आयोजित हिंदी रंगमंच दिवस पर नाटक एवं संगोष्ठी आयोजित की गई। वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं पूर्व हिंदी अधिकारी पूर्व मध्य रेल, दानापुर राजमणि मिश्रा की अध्यक्षता में एवं पत्रकार अशोक कुमार कुणाल के संचालन में हिंदी रंगमंच की उपलब्धियां विषय पर संगोष्ठी में वक्ता के रूप में साहित्यकार एवं पत्रकार प्रसिद्ध यादव ने कहा की हिंदी रंगमंच दिवस हर वर्ष 3 अप्रैल को मनाया जाता है
3 अप्रैल 1968 को बनारस में पहली बार शीतला प्रसाद त्रिपाठी कृत हिंदी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ था। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी एवं कवि विनोद शंकर मिश्र उपस्थित थे। वहीं दूसरी ओर कलाकारों में प्रतिबद्धता की कमी, पूर्वाभास के प्रति घटती रुचि, प्रेक्षागृह का अभाव अन्य संसाधनों के कारण नाटक करना मुश्किल होता जा रहा है। संगोष्ठी को वरिष्ठ रंगकर्मी यमुना प्रसाद,विकास कुमार पप्पू एवं विष्णु गुप्ता ने अपनी बातें रखीं। कार्यक्रम के दूसरे चरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र लिखित एवं नवाब आलम द्वारा निर्देशित नाटक अंधेर नगरी का मंचन किया गया।
गौरतलब है कि हिंदी रंगमंच के विकास में भारतेंदु नाटक मंडली 1906 की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। नाटक के कलाकारों में राकेश कुमार उर्फ राकेश प्रेम, तेजस रॉय, सिद्धू कुमार,अभिषेक राज,राजू कुमार,सन्नी कुमार,संस्कार राज,रौशन कुमार,आदित्य कुमार,निशांत,कुंदन कुमार आदि शामिल थे।