वाद मूद्दत के आए हैं वो रिमझिम सावन आज भी है
महादेवी वर्मा जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कवयित्री सम्मेलन
पटना,अजीत। रविवार की संध्या साहित्य-सम्मेलन की कवयित्रियों के नाम रही, जब स्त्री-मन के विविध रूपों और उनके संवेगों को अभिव्यक्ति देने वाली विभिन्न भावों की कविताओं और गीत-ग़ज़लों का लम्बा दौर चला। सम्मेलन में हिन्दी काव्य में छायावाद-काल की प्रणम्य कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा की जयंती पर कवयित्री-सम्मेलन का आयोजन हुआ था। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस काव्योत्सव में दो दर्जन से अधिक कवयित्रियों ने अपनी रसवन्ती रचनाओं से ऐसी पीयूष-धारा बहाई कि श्रोता डूबते-उतराते रहे।
काव्य-पाठ का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र द्वारा वाणी-वंदना से हुआ। कवयित्री इंदु उपाध्याय ने विरह की इन पक्तियों से सबके मन को द्रवित कर दिया कि ” बीती सदियाँ उनसे बिछड़े, दर्द का आलम आज भी है। बाद मूद्दत के आए हाओं वो रिमझिम सावन आज भी है”। चर्चित कवयित्री आराधना प्रसाद ने अपनी इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल का सस्वर पाठ कर श्रोताओं का दिल ही जीत लिया कि, “आराधना में लीन हो, प्रभु-प्रार्थना है आदमी/ अमृत-कलश मन में धरे नित साधना है आदमी”।
सागरिका राय ने बिहार की गौरव-गाथा को शब्द दिए और कहा- स्वर्णिम इतिहास का अब गान नहीं/ आह्वान हो बीते, विसरित अवशेषों में/नूतन गर्वित प्राण हो” । कवयित्री पूनम आनंद ने वाग्देवी से प्रार्थना की, “हे हंसवाहिनी ! शक्ति रूपिणी! कृपा दृष्टि माँ कीजिए/ अंधेरी गुफा में भटक रहे सब ज्ञान-रोशनी दीजिए।
कवयित्री पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’ ने इस मधुर गीत से कि “लिखूँ कैसे अभी गीत मैं नेहिल भावनाओं के/ यहाँ केवल उगे हैं शूल अनगिन वर्जनाओं के!” श्रोताओं के मन को स्पर्श किया। डा सीमा यादव ने प्रकृति के अनुचित दोहन और उस पर उसके कोप को इन पंक्तियों में व्यक्त किया कि “बाढ़, भूकंप हो या महामारी, सजाएँ पल-पल प्रकृति देती है/ संयम, त्याग, तप इसी बहाने ओ सबको सिखा देती है।
कवयित्री मीरा श्रीवास्तव ने कहा – “मैं मोहन की मीरा हूँ! कृष्ण की मैं बाबरी/ मैं साँवरे की साँवरी/ मैं हरि के गीत गाती हूँ”। स्मृति कुमकुम ने ‘शक्ति-उपासना’ के अवसर को ध्यान में रखकर यह गीत पढ़ा कि “तू धरा पर अवतरित माँ, रूप दुर्गा मोहिनी/ चित्तरूपा, सर्वविद्या, प्रेम शिव अधिकारिणी”। कवयित्री-सम्मेलन की संचालिका डा शालिनी पाण्डेय का कहना था कि- “थोड़ी नटखट, थोड़ी चंचल/ माँ के भावों से मिलजुलकर/ शब्दों संग गढ़ती रहती/ मेरी कविता!”
अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में नारी-अस्मिता को रेखांकित करती हुईं डा मधु वर्मा ने कहा – “नारी की आकृति में तेरी मूक प्रतिभा नहीं/ हम नारियों का चेतन स्वरूप है/ मूक मूर्ति नहीं माँ तू स्वयं है/ सशक्त-चेतना से अंतः विश्वास जगा दे!”
कवयित्री कृष्णा मणिश्री, प्रतिभा पराशर, ऋता शेखर मधु, लता प्रासर, नूतन सिन्हा, डा विद्या चौधरी, अनुपमा सिंह, अंजुला कुमारी, ज्योति, रिमपी कुमारी, उत्तरा सिंह ने भी अपनी रचनाओं से कवयित्री-सम्मेलन को यादगार बना दिया। मंच का संचालन डा शालिनी पाण्डेय ने किया।
आरंभ में महीयसी महादेवी वर्मा के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी। सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि वो छायावाद-काल की प्रमुख स्तम्भ ही नहीं, हिन्दी कविता की ‘महादेवी’ थी। “मैं नीर भरी दुःख की बदली” की इस अमर कवयित्री ने हिन्दी के काव्य-सागर में गीतों की अनेक निर्झरनियाँ गिराई, जिनका उद्गम-स्थल, करुणा से भरा उनका विशाल हृदय ही था। उनके गीतों ने हज़ारों-लाखों आँखों के आँसू पोछे हैं। उन गीतों ने समाज के जीवन में राग उत्पन्न कर, उल्लास और उत्साह के नए रंग और रस प्रदान क़िए हैं।उनके साहित्य में भारतीय महिलाओं की पीड़ा ही नही लोक-मंगल की कामनाएँ भी हैं।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कमला प्रसाद, कुमार अनुपम, पंकज वसंत, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा आर प्रवेश, प्रो सुखित वर्मा, अर्जुन प्रसाद सिंह, अजित कुमार भारती आदि ने भी पुष्पांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर, कवि अर्जुन कुमार गुप्त, अमित कुमार सिंह, जितेंद्र कुमार सिन्हा, विशाल कुमार, एकलव्य केसरी, अमन वर्मा, रूपम कुमारी, अश्विनी कविराज, दिगम्बर जायसवाल, डौली कुमारी, अमृत राज सिंह, श्रीबाबू समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।