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भारत शरणार्थियों का पहला पसंद

  • भारत में भारतीय नागरिकों के अलावा बड़ी आबादी बाहरी की भी
  • भारत मे अब तक नहीं हो सका असल संख्या का खुलासा

भारत में रिफ्यूजी काफी तादाद में,फ्लोटिंग पॉपुलेशन भी शामिल

नई दिल्ली। हर देश जनगणना के आधार पर तय करता है कि उसके यहां कितने नागरिक हैं और उनके लिए उसे क्या-क्या सुविधाएं जुटानी हैं। पढ़ाई से लेकर नौकरी, अस्पताल और बाकी बेसिक चीजों की जरूरत भी इसी आधार पर तय होती है। हमारे यहां हर 10 साल में जनगणना होती है। साल 2011 में पिछला सेंसस हुआ हालांकि कई सारे रिकॉर्ड्स के आधार पर माना जा रहा है कि हमारी आबादी 1 अरब 40 करोड़ को क्रॉस कर चुकी है। ये तो हुई सिर्फ भारतीय नागरिकों की संख्या, लेकिन बहुत बड़ी संख्या में वो लोग भी रहते हैं, जो इंडियन सिटिजन नहीं हैं।
साल 2020 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत को शरणार्थियों की टॉप पसंद बताया गया। हमारा देश दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन तीन देशों में सबसे ऊपर है, जिसने इसी एक साल में सबसे ज्यादा शरणार्थियों को शरण दी। यहां तक कि प्रवासियों की संख्या भी यहां कम नहीं। डब्ल्यूएचओ की मानें तो दुनिया में हर आठ में से एक व्यक्ति प्रवासी है। हमारे यहां लगभग 48,78,704 प्रवासी हैं, जिनमें 2,07,334 रिफ्यूजी भी शामिल हैं।
रिफ्यूजियों की असल संख्या में काफी घालमेल हो सकता है। यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीस (यूएनएचसीआर) नब्बे के दशक से लगातार इसपर नजर रख रहा है कि किस देश में कितने शरणार्थी हैं और किस हाल में रह रहे हैं। ये आमतौर पर एजेंसी के साथ रजिस्टर्ड होते हैं। यही डेटा यूएनएचसीआर के पास होता है। लेकिन शरणार्थियों की काफी आबादी बिना पंजीकरण के भी रह रही है, इनकी कोई पहचान नहीं है। शरणार्थियों की इंडियन हिस्ट्री देखें तो माना जाता है कि यहां सबसे पहले पारसी शरणार्थी आए। वे 9वीं से 10वीं सदी के बीच आए और गुजरात के सूरत में रहने लगे। वे तुर्कमेनिस्तान, जिसे तुर्कमेनिया के नाम से भी जाना जाता है, से आए थे। बाद में वे समुद्र से सटे दूसरे राज्य-शहरों में भी फैल गए, जैसे मुंबई में।
एक बड़ी आबादी बांग्लादेश से है। साल 1971 के आखिर में भारत की मदद से पाकिस्तान से जंग छेड़ चुके बांग्लादेश से शरणार्थी भागकर भारत आने लगे। बांग्लादेश तो आजाद हो गया लेकिन हमारे यहां भारी आबादी बढ़ने के कारण शरणार्थी संकट पैदा हो गया था। माना जाता है कि उस दौर में 70 लाख से एक करोड़ बांग्लादेशियों ने यहां शरण ली। पड़ोसी देश श्रीलंका में लंबे समय तक राजनैतिक और आर्थिक उठापटक चलती रही। दो साल पहले देश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था। तब भी समुद्री रास्ते से भारी संख्या में श्रीलंकाई शरणार्थी भारत पहुंचे। इनकी असल संख्या तो पता नहीं, लेकिन पिछले साल राष्ट्रपति कार्यालय के जारी बयान के मुताबिक अकेले तमिलनाडु में ही 58 हजार से ज्यादा श्रीलंकाई रिफ्यूजी हैं।
तिब्बती शरणार्थी भी यहां लाखों की संख्या में हैं। साल 1959 में ही वहां से लगभग 10 लाख लोग दलाई लामा के साथ यहां चले आए। इनकी काफी संख्या उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में बसी, जबकि बाकी लोग ओडिशा के गजपति जिले में भी चले गए। म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम और अफगानिस्तान के शरणार्थी भी हमारे यहां हैं। इनकी भी ठीक संख्या का अंदाजा नहीं। अफगान से आए बहुत से सिख और हिंदुओं को देश की नागरिकता भी मिल चुकी है। साल 2020 में मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स में एक आरटीआई लगाई। इसका जवाब काफी गोलमाल था, जिससे साफ नहीं हो सका कि असल में कितनी संख्या अवैध रूप से रह रहे लोगों की होगी। ये लोग पहचान छिपाकर रहते हैं और कुछ इस तरह से घुलमिल जाते हैं कि पता ही नहीं लग सके कि ये बाहर से हैं। कई बार नकली पहचान पत्र और बाकी प्रमाण-पत्र बनाकर रखने की खबरें भी आती रहीं।
काफी सारे लोग वे हैं, जिन्हें फ्लोटिंग पॉपुलेशन कहा जा सकता है, यानी वे आते-जाते रहते हैं। इनमें वीजा पर आए स्टूडेंट्स भी हैं और कामकाजी लोग भी। ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की मानें तो पिछले सात सालों में भारत आने वाले विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या में लगभग 42% की बढ़त हुई। डेटा साल 2012-13 से लेकर 2019-20 तक का है। अवैध रूप से रहते लोगों या फिर शरणार्थियों को लेकर भी दुनिया के लगभग हर देश में बड़ा बवाल होता रहा। भारत में अक्सर इसका विरोध होता है। दरअसल ये बाहरी लोग वे होते हैं, जो अपने देश में किसी खतरे के चलते दूसरे देश पहुंच जाते हैं।

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