अब शास्त्रीय नृत्य केवल मंचीय प्रदर्शन नहीं रहा, बल्कि एक सशक्त उपचार का माध्यम भी
आरोग्य की पवित्र नृत्ययात्रा: शाम्भवी शर्मा की ‘नृत्यामृत’ के माध्यम से कुचिपुड़ी विरासत
पटना। अब शास्त्रीय नृत्य केवल मंचीय प्रदर्शन नहीं रहा, बल्कि एक सशक्त उपचार का माध्यम भी बन चुका है। दिल्ली की 17 वर्षीय कुचिपुड़ी नृत्यांगना शाम्भवी शर्मा ने अपनी पहल ‘नृत्यामृत’ की शुरुआत की है। संस्कृत स्कूल की छात्रा और मूल रूप से बिहार से जुड़ी शाम्भवी ने पद्मश्री गुरु राजा राधा रेड्डी से नौ वर्षों का गहन प्रशिक्षण लिया है।

शाम्भवी ने नृत्यामृत’ के माध्यम से शास्त्रीय नृत्य को भावनात्मक और मानसिक आरोग्य के लिए उपयोग करना शुरू किया है।

हाल ही में उन्होंने दिल्ली की एक बस्ती में 8 से 14 वर्ष की उम्र के वंचित बच्चों के साथ एक विशेष नृत्य सत्र आयोजित किया, जहाँ बच्चों को ‘समभंग’ और ‘त्रिभंग’ जैसी मुद्राओं के ज़रिए आत्म-प्रकाश और संतुलन का अनुभव दिया। बच्चों द्वारा बनाए गए चित्रों में उनके भीतर के भावों और गाँव की यादों की झलक स्पष्ट थी।

वही शाम्भवी ने दिल्ली के आर्मी बेस अस्पताल में भी एक भावनात्मक प्रस्तुति दी। ‘दशावतार’ पर आधारित उनकी कुचिपुड़ी नृत्यकथा ने मरीजों के बीच शांति, आशा और करुणा का संचार किया। पताका, शिखर, अर्धचंद्र और कपित्था जैसी मुद्राओं ने नृत्य को एक दिव्य अनुभव में बदल दिया। एक अनौपचारिक सर्वेक्षण में 83% मरीजों ने स्वयं को अधिक शांत और सकारात्मक महसूस किया।

शाम्भवी की यह पहल दर्शाती है कि जब कला, सेवा और संस्कृति एक मंच पर मिलती हैं, तो वे न केवल दर्शकों को भावविभोर करती हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा भी तय करती हैं। ‘नृत्यामृत’ इसी सोच का विस्तार है। जहाँ नृत्य, आत्मा के स्तर पर आरोग्य की अनुभूति कराता है।